अब् मुझे कोई इंतज़ार कहाँ
रूखे से होंटों पर कोई बात भटकती है, उनके पेहेलू में गई वो रात खटकती है, बरसों बीते फिजाओं का कोई ख़त न आया, गुलदानो में अब् ख़ाक महेकती है, फर्श पर गिर के कोई किस्सा टूटता सा है, खिड़की के शीशों पे जब भी कोई आह चटकती है, मौसम भी सावन की बूँदें भूल गया, आगन में बस धूप बरसती है, पंछी भी इस चौखट से रुसवा रुक्सत, मुंडेरों पर कोई तीस केहेक्ति है, रूखे से होटों पर कोई बात भटकती है।