'जर्द आँखें'
एक पल इधर बुझ रहा है, एक लम्हा उधर भी जल रहा होगा, एक आह मैं दबाये बैठा हूँ, एक दर्द उधर भी पल रहा होगा, वोः रात अब भी सुलगती है मेरी सांसों में, तेरा जिस्म भी रातों को जल रहा होगा, है कोई राज़ उन तारीक़ जर्द आँखों का, हाँ कोई ख्वाब पलकों से ढल गया होगा.