"मुकम्मल"
रात जब ख्वाब के सीने पे रखा सर मैंने,
तेरी आगोश की गर्मी सी कुछ महसूस हुई,
रात जब दूधिया कोहरे ने छुआ चेहरा मेरा,
तेरे हाथों की शोख नरमी सी महसूस हुई,
मुझे मालूम है की तू मुझे मुकम्मल नहीं,
तभी तो अक्सर तुझे ख्वाब में जी लेता हूँ,
मेरे होठों पे रखी बात तू कह देती है,
तेरे सीने में जमा दर्द मैं छू लेता हूँ.
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