"बेबस उजाले"
उजाले बेबस से हैं अँधेरे गाँव में,
धुप नहीं रिसती जाड़ दरख्तों की छाओं में,
बेक्स परिंदे सय्याद के हम नफस हो बैठे,
ये कौन सा रंग बिखरा है फिजाओं में,
अदीब तुम सही पर हमसे बुतपरस्त नहीं,
तुम हमसे हार जाओगे मियां दुआओं में.
वो घूरता रहा मुझे ये साँस चलती रही,
असर वो अब ना रहा सनम तेरी निगाहों में,
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