"सुबह का अख़बार"



बेबसी का वो आलम जिया है कभी,
जब गहरी सांसों से होती हुई आह,
कोख तक उतर जाती है,

ज़हन के अँधेरे कोनो में,
सुबकिया लेते उजाले को टटोलती,
उन रूखी हथेलियों ने छुआ है कभी,

सुलगती आग में लिपटे घर,
और उसके धुंए से लिपटी रूहों,
की घुटन सुनी है कभी,

गिड़गिड़ाती बेबसी और,
हवस के क़दमों में लिपटी हुई आबरू,
का उधड़ा जिस्म सेहलाया है कभी,

जब भी सुबह का अख़बार उठाता हूँ,
तो ये सब महसूस करता हूँ मैं.




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

'वोः तेरा है'

'जर्द आँखें'

Safety Of Women In India