एक पल इधर बुझ रहा है, एक लम्हा उधर भी जल रहा होगा, एक आह मैं दबाये बैठा हूँ, एक दर्द उधर भी पल रहा होगा, वोः रात अब भी सुलगती है मेरी सांसों में, तेरा जिस्म भी रातों को जल रहा होगा, है कोई राज़ उन तारीक़ जर्द आँखों का, हाँ कोई ख्वाब पलकों से ढल गया होगा.
एक शाम का गर्म पोशीदा सा ख़याल, जिसे ओढ़ कर एक रोज़, बैठूं मैं तेरे साथ और रात कर दूँ, एक रात का शोख़ सर्द सवाल, जिसे लबों से तेरे लबों पे रख दूँ, ऊँगली से नाजुक सी नंगी पीठ पर तेरी, उगाऊं यह दफ़्न रिश्ता,बढ़ न पाया जो, इस मस्नूई तेहज़ीब के खारे सख्त पानी में, तेरी नर्म सांसों के फंदों में उलझी रहे ये साँस मेरी, और तेरे गलते जिस्म की आंच में मेरा जिस्म भी पिघल जाये, बस एक सुलगती रात का ख़याल है जो बुझा दूँ, तेरी आघोश में सिमटा हुआ एक दिन जला दूँ.
इस दिल में एक एहसास है, जो तेरा है, इन पलकों पर एक ख्वाब है, जो तेरा है, इस दुनिया दारी काम काज से बोहोत अलग, एक लम्हा है जो ख़ास है, वोः तेरा है, इन जाली रिश्तों और रस्मों से दूर कहीं, ये नाजुक सा जो साथ है, वोः तेरा है, जो हमने मिलकर जोड़ा था, हाँ उस दिल का, एक टुकड़ा मेरे पास है, जो तेरा है, बस यह ख्वाइश है, कभी जो ऐसा कह पाऊं, जो कुछ भी मेरे पास है, वोः तेरा है.
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