इस समाज की परम्पराओं के धारणाओ के , न जाने कई बांध लांघे मैंने ,
हौसला तुम हो ,
खुद से न जाने कई सवाल और न जाने कितने ही सौदे ,
और अब् फैसला तुम हो ।

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