हैं पैर, घिसट के चलता है,

तू काफिर मुझ पर हस्ता है,

क्या कदमो को मालूम नहीं,

है कौन गली क्या रास्ता है,

सब सूनसान खामोश पड़ा,

ये किन गूगों का दस्ता है,

कोई चोर घुसे तब बस्ती का,

हालत बड़ा ही खस्ता है,

सब कुछ देखा भला उसका,

वो भोला भला बच्चा है,

कुछ तो बदलू उम्मीद लिए,

वो रोज़ कमर को कसता है ।

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