हर रोज़ मुझे वो मिलता है,
हर भोर भये,
हर सांझ भये,
वो सूरज की किरनी में घुल,
मेरे चहरे पर खिलता है,
हर रोज़ मुझे वो मिलता है,
कभी-कभी जब डर जा ऊं ,
खुद को तनहा, वीरान पा ऊं,
तो बच्चों की मुस्कानों में,
गलियों में नन्हे पाओं लिए,
वो ठुमक ठुमक कर चलता है,
हर रोज़ मुझे वो मिलता है,
है धरा वहीँ, आकाश वहीँ,
क्यों हाथों तेरा हाथ नहीं,
सूखे होंठों को प्यास नहीं,
है कल कल सागर पास यहीं,
व्याकुल तृष्णा, बेचैन ह्रदये,
जब त्रिषण आग में जलता है,
तब स्वर्णिम तेरा आँचल ही,
हर लहर लहर में हिलता है,
हर रोज़ मुझे वो मिलता है।
हर भोर भये,
हर सांझ भये,
वो सूरज की किरनी में घुल,
मेरे चहरे पर खिलता है,
हर रोज़ मुझे वो मिलता है,
कभी-कभी जब डर जा ऊं ,
खुद को तनहा, वीरान पा ऊं,
तो बच्चों की मुस्कानों में,
गलियों में नन्हे पाओं लिए,
वो ठुमक ठुमक कर चलता है,
हर रोज़ मुझे वो मिलता है,
है धरा वहीँ, आकाश वहीँ,
क्यों हाथों तेरा हाथ नहीं,
सूखे होंठों को प्यास नहीं,
है कल कल सागर पास यहीं,
व्याकुल तृष्णा, बेचैन ह्रदये,
जब त्रिषण आग में जलता है,
तब स्वर्णिम तेरा आँचल ही,
हर लहर लहर में हिलता है,
हर रोज़ मुझे वो मिलता है।
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