ग़ज़ल

हमको ये रिश्ते निभाने नहीं आते,
इन आँखों को झूट छुपाने नहीं आते,
कितना भी थामों फ़साने छूट जाते हैं,
इन होठों को जाल बिछाने नहीं आते,
हमने नयी रस्मों को ढोया बोहोत है,
क्यों लौट कर रिश्ते पुराने नहीं आते,
तकदीर में मेरी राह वो क्यों लिखी,
जिस राह से लौट कर दीवाने नहीं आते,
कुछ सोचा समझा और बस इनकार कर दिया,
यूँ रेत के घर हमें बनाने नहीं आते,
महेफिल में हमको ताकती नजरें, कुछ पल ठहर कर गुज़र गयीं,
इन नज़रों को तीर के निशाने नहीं आते,
इस कशमकश के भवर में कब तक रहोगे,
क्यों तैर कर दरिया किनारे नहीं आते।

टिप्पणियाँ

storyteller ने कहा…
humko ye riste nibhaane nahin aate..... great linee ...really nice.....jindagi mein kuch haadse yun hui , khamosh hum hue ,kalam bolne lagi....just go on..

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