"खुद से हुई एक मुलाक़ात"

आज तन्हा अकेला वक़्त मिला तो खुद को सोचने लगा, कहेते है जब आदमी अकेला होता है तो खुद के बोहोत करीब होता है, मौका सही था तो सोचा खुद से चार बातें कर लूँ,
कुछ सवाल कर लूँ कुछ जवाब माँग लूँ, पर जब खुद को सामने रखा और बैठा...तो कुछ ना पाया...मैं भी चुप था और वो भी...सन्नाटा सा छा गया...मैं भी कुछ कहेने को ढूड़ रहा था और वो भी....ना कोई अल्फ़ाज़ मेरे पास था ना उसके पास, मानो एक पारदर्शी काँच की कोई सतेह हो मेरे सामने....जो होकर भी वहाँ नही था, बस मन व्याकुल हो उठा...सोचने लगा की ये क्या कर रहा हूँ मैं...वक़्त खराब तो नही कर रहा मैं इस बेफ़िजूली के काम में.

फिर मैने उस परिस्थिति को नकार दिया, मैने उसे अनदेखा कर दिया जो मेरे सामने था...और राहत फ़तेह अली ख़ान जी के द्वारा गाया हुआ एक गाना गुनगुननाए लगा, मैने लगभग आधा गाना ख़तम कर दिया पर अभी भी वो चुप था...बस मुझे बिना किसी भाव के साथ देख रहा था...जैसे उसे कुछ सुनाई ही ना दे रहा हो...बहेरा हो...कुछ ना कह रहा था वो...मानो गूंगा भी हो...पर बस कुछ है वहाँ...मैं उसके आर पार देख सकता था...उसके पीछे कुछ नही छुप रहा था...

मैं फिर चुप हो गया...और उसे चुप होकर देखने लगा...ना जाने क्यों ना चाह कर भी उसकी नकल उतारने लगा...सन्नाटा फिर छा गया...पर इस बार वो बेचैनी नही थी वहाँ...जो चंद पल बीते रही थी...मानो मेरी और उसकी ताल मेल खाने लगी थी...शरीर स्थिर था...हाथ पैर ढीले कोई हरकत नही...मैं कौन हूँ, कहाँ बैठा हूँ, कौन से देश में कौन से राज्य में किस मोहल्ले में मुझे कुछ याद नही था..यहाँ तक के अपना नाम भी याद नही रहा...मैं खुद को ही भूल गया....और उस पारदर्शी सतेह में घुलने सा लगा...
विलीन होने लगा...मेरी आँखें बंद होने लगीं...अंधेरा सा छाने लगा...जैसे जोर्रों की नींद में होने पर होता है...पर ये नींद का झोका नही था.

तभी ज़ोर से हुई एक आवाज़ ने मेरी आँखे खोल दी...और मुझे फिर वहीं पोहोचा दिया जहाँ मैं पहेले था...ये आवाज़ हुई घर के सामने बन रहे फ्लॅट्स में जोरों से चल रहे काम की वजेह से...एक सिरे से सब याद आ गया...मैं कौन हूँ कहाँ रहेता हूँ..क्या करता हूँ..किसका लड़का हूँ..किसका भाई हूँ....जहाँ मैं रहेता हूँ उस फ्लॅट में कितने कमरे है और कमरों में कौन कौन है...कितने बाथरूम्स हैं... मेरा बंद पड़ा कंप्यूटर...मेरे पास ही पड़ा लॅपटॉप जिसमें याहू मेसेनजर पर मेरी गर्लफ्रेंड ऑनलाइन है....उसका बर्थडे....फोटोग्रफी एग्ज़िबिशन का उसका आखरी दिन....नेहा...और उसके द्वारा मेन इन ब्लॅक-3 मूवी ज़रूर देख कर आने की हिदायत भी.
फिर मैने एक गहेरी सांस भारी...बीन बैग पर बैठे बैठे पसीने से पासीज चुके शरीर को थोड़ा हिलाया डुलाया...और लॅपटॉप उठा कर लिखने बैठ गया...साथ ही इंटरनेट पर पर बुक माई शो पर मेन इन ब्लॅक-3 मूवी के लिए टिकेट्स चेक करने लगा.

टिप्पणियाँ

Dr Xitija Singh ने कहा…
gaurav ji ... shukriya ... main thoda busy hoon thesis mein .. isliye fb kuch waqt ke liye band kar diya hai ... thesis submission ke baad activate karungi .. aap kaise hain ... aap mera alternate mail id rakh lijiye .. xitija.singh@yahoo.com .. apna khayaal rakhiye ... god bless :)

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