The Amazing Spider-Man 3d
बीते शुक्रवार ही प्रकाशित हुई इस फिल्म का ज़िक्र पिछले कई दिनो से मेरे ऑफिस में चल रहा था...
ऑफिस से कई लोगों ने "उर्वशी" थियेटर में शुक्रवार रात 9:30 के स्पाइडर-मेन 3डी शो के टीक्ट्स पहेले ही बुक कर लिए थे....फिल्म में मेरा पसंदीदा अभिनेता इरफ़ान ख़ान भी है ये सुनकर मैने भी उसही थियेटर में अपनी और अपने कुछ करीबी मित्रों के टीक्ट्स बुक कर लिए....और आख़िरकार हम बंगलोर के उर्वशी थियेटर के प्रांगड़ में थे...मैं और मेरे ऑफिस से करीब 24 और लोग.
हम सब थियेटर के बाहर एकत्रित हुए...पार्किंग में खड़े वाहनो की कतार बता रही थी की फिल्म देखने आए हुए लोगों की संख्या बोहोत है...कुछ समये बाद सभी ने अपने-अपने 3डी ग्लासस लिए और थियेटर में प्रवेश किया....करीब 1161 सीट्स वाला ये सिनेमा हॉल खचा-खच भरा था, कुछ ही देर में हम सभी अपनी सीट्स पर थे....शोर इतना की अपनी आवाज़ भी चीखने के बाद खुद के कानों तक पोहोच रही थी.
3डी ग्लासस टूटने पर 2500/- रुपये जुर्माना होने की एक सूचना के बाद सलमान ख़ान की आने वाली फिल्म टाइगर का ट्रेलर शुरू हो गया...और शोर और ज़्यादा बढ़ गया...सलमान ख़ान के प्रेमी बंगलोर में भी इस तादात में होंगे मैने ऐसा कभी नही सोचा था...कुछ ही देर में मूवी शुरू हो गई...हम सबने अपने 3डी ग्लासस आँखों पर चढ़ा लिए और मूवी देखने लगे...पर पास ही हमारी अगली सीट पर बैठे कुछ युवाओं ने शोर कम ना किया...उनमें से एक लड़का ज़ोर-ज़ोर से सीटियाँ बजा रहा था....मानो सीटी बजाने की प्रतियोगिता में आया हो...अतः मैने और मेरे पास ही बैठे मेरे एक मित्र ने उससे अनुरोध किया की क्रपया थोड़ी शांति बनाए रखें....बस इतने पर ही वो लड़का आपा खोने लगा...बोला "थियेटर में तुम किसी को कैसे टोक सकते हो शोर मचाने से...मेरा जो मान है मैं करूँगा"...वो लड़का यहाँ बंगलोर से जान पड़ता था...जो अपने कुछ 4 और मित्रों के साथ मूवी देखने आया था, या यूँ कहिए सीटी बजाने आया था.
इसपर मेरे मित्र ने उसपर हाथ उठा दिया....और उसके 3डी ग्लासस उसके चहेरे से उतर मेरे पैरों में आ पड़े....फिर क्या था...हाता पाई शुरू हो गई...और मैं और मेरी दाईं तरफ बैठा मेरा ही एक मित्र शिव उनसे प्रार्थना करने लगे, अनुरोध करने लगे और कहेने लगे की क्रपया लड़ाई ना करें....पर वो कहाँ सुनने वाले थे..मैं बीच में था...और उनसे ज़ोर- ज़ोर से कह रहा था...brother it was our fault and we are sorry for that..please sit down and don't fight....और मेरे अनुरोध का नतीजा ये हुआ की किसी ने मेरे बाएँ गाल पर ज़ोर का तमाचा जड़ दिया....और मेरा कान बंद हो गया....मैने गाल पर पड़े थप्पड़ पर ध्यान ना देते हुए अपनी प्रार्थना जारी रखी...साथ ही हमारे ऑफीस से आई हुई हमउम्र कुछ लड़कियों को ध्यान में रखते हुए मैने उन्हे मानने का प्रयास फिर किया....मैने फिर कहा- I am requesting you guys please don't fight...इतना कहेते ही उस ही गाल पर एक ज़ोर का तमाचा मुझे फिर रसीद हो गया....अब मैं चुप था सोच रहा था ये क्या हो रहा है.....एक सीधी सी बात किसी को इतनी खल गई की बिंबात ही मेरा गाल गरम कर दिया...मैं सोचने लगा दोष किसको दूं...किससे क्या कहूँ... हाथापाई में विपक्षी दल में से एक लड़के का होंठ कट गया इसपर उनमें गुस्सा और बढ़ गया....मैं भी थोड़ा ढीला हो गया और चुप हो गया क्योंकि बिला वजेह और थप्पड़ खाने की इच्छा अब मेरी नही थी...इतने में मेरे ऑफीस के कुछ और लोग वहाँ एकत्रित हो गये और माहौल शांत करवाने लगे....कुछ देर बाद वो सभी लड़के फोन को कान में लगाए हुए थियेटर से बाहर चले गये....मैने अनुमान लगा लिया था की बात यहाँ खत्म नही होगी....और मेरा अनुमान सही भी था....कुछ देर बाद ही पता चला की बाहर 30 से 35 लड़के और आ गये हैं....मेरे ऑफीस के ही एक मित्र हार्दिक ने हमें हिदायत दी और कहा की कोई भी थियेटर के बाहर ना निकले....मेरे ही एक करीबी मित्र कुलदीप उर्फ केडी के घर से एक महिला और मूवी देखने आई हुईं थीं....और हम सब किसी तरह का उपद्रव या हानि नही चाहते थे....अब हम में से किसी का मन मूवी देखने में नही लग रहा था..और हमारी वजेह से ना जाने कितने ही लोगों को आनंद में खलल का सामना करना पड़ा...और मैं उन सभी से माफी चाहूँगा.
मेरी ही एक सहकर्मी स्मिता का मैं बोहोत-बोहोत शुक्रिया अदा करना चाहूँगा उसके द्वारा की हुई हुमारी मदत के लिए. स्मिता मैं तुम्हारा बोहोत-बोहोत अभारी हूँ. हमारी वजेह से तुम्हें जो भी परेशानी उठानी पड़ी उसके लिए मैं माफी चाहता हूँ.
साथ ही बोहोट बोहोट शुक्रिया अनिल जी को जिन्होने पुलिस को बुलाने में हमारा सहयोग दिया...और एक समझदार इंसान की भूमिका निभाई.
मुकुंद और अभी, आप दोनो को भी बोहोत-बोहोत धनयवाद जिन्होने वहाँ उपस्थित ना होते हुए भी स्थिति को सम्हलने की पूरी कोशिश की.
मैं इस बात को लेकर बोहोट चिंतित था की बात और ना बिगड़ जाए.मैं बस यही प्रार्थना कर रहा था की हर कोई घर सही सलामत पोहोच जाएं...फिल्म के बीच-बीच में आकर विपक्षी दल के कुछ लड़के मुझे और मेरे मित्रों को जबरन बाहर ले जाने का प्रयास कर रहे थे..पर वे असफल रहे...हुमें भली भाँति पता था बाहर जाने पर क्या होने वाला है.
कुछ देर में ही पुलिस आ गई...और उनकी तरफ से हमें ये सांत्वना दी गई की स्थिति अब नियंत्रण में है आप मूवी देखें, पुलिस थियेटर के बाहर मौजूद रहेगी और मूवी ख़तम होने के बाद हमें सही सलामत बाहर निकालने की ज़िम्मेवारी पुलिस की है....तब कहीं जाकर थोड़ा सुकून मिला और हमने आख़िर की आधे घंटे की बची मूवी देखी.
मूवी ख़त्म होने के बाद हम थियेटर से बाहर निकले...और तितर-बितर हो पार्किंग में अपनी मोटर बाइक्स तक पोहोचे
और वहाँ से बाहर निकल आए....हुफफफ्फ़....
ये सब देखने के बाद मैं आप सभी से कुछ कहेना चाहता हूँ कुछ पूछना चाहता हूँ....
की क्यों आज हर इंसान दूसरे इंसान से इतना खफा है....मैं ये नही समझ सका की हम में से किसी ने भी क्या हासिल कर लिया क्या साबित कर लिया मूवी थियेटर में ये बखेड़ा खड़ा करके....वो पल बेहेतर भी हो सकते थे....ना जाने ये कौन सी ज़िद है जो हमें इंसान नही रेहेने देती.
पलक झपकते ही हाथ उठ जाते हैं....गलियाँ फूट पड़ती हैं होठों से...इतनी नफ़रत कहाँ से आ गई एक दूसरे के लिए ??
काश अगर हम ये समझ पाते की हम सभी एक दूसरे से ही जुड़े हुए है एक दूसरे का ही हिस्सा हैं...हुमारा अस्तित्व एक दूसरे पर ही टिका है...हम सब मिलकर ये देश बनाते हैं...गाओं, कस्बे, शहेर, राज्य, मुल्क, धर्म अलग-अलग होंने पर भी हम सभी में एक चीज़ समान है कि हम इंसान है.
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