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नवंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
"खोटा सिक्का" तुझे कमाने की कोशिश में मैं बिक गया, चला जो दावं, तो मैं चारो खाने चित गया, भरे बाज़ार में उसने मेरी कीमत लगाई क्या, किसी खोटे, घिसे सिक्के के जैसा पिट गया, ये कैसा दावं खेला, कल तलक था रहेनुँमा मेरा था जो तक़दीर वो तक़दीर में क्या लिख गया,
"YOU" Shattered many obstacles of this societie's notions and its traditions The strength were you After Many questions with the self and many deals And the decision were you The smoldering aspirations have burnt me My careless desire And the limit of that desire were you The sea has drained out of my stoned eyes I wanted to cry but lacked tears The sobbing doors of my house waiting The bird of complaints flew A name left like dry leaves on the ground That was me .
"तुम" लम्हों का वो आखरी सिरा उंगलियों के पोरों से अभी छूटा नही था, मुरझाया, सूखा हुआ वो आखरी दम जो तुमने भरा था, टूट कर गिरने को ही था, कि जल उठा फिर उस अल्लहड़ से पहाड़ के पीछे से उन्माद का वो सूरज. विदा हुए तुम और रह गई उस शब की नींद फिर अधूरी, भारी हो झुकती हुई पपनियाँ, आगन में मोढों के पास रखे चाय के दो प्यालों और हवा में उड़ते उस खाली बिस्कुट के रेपर को देख रहीं हैं, जी खाली खाली सा है, बेचैन है, और मैं एक एक कर बीते हुए बिखरे हुए लम्हे समेट रहा हूँ, इस उम्मीद में कि ये जी भर जाए, बिस्तर पर पड़ी सिलवटों में बाकी बची कुछ बात जो जल्दी में तुम लिख गये थे, पढ़ रहा हूँ, उस आखरी आगोश की खुश्बू और गरमी अभी भी मुझसे लिपटी है, और तुम्हारे हाथ की नमी से मेरा हाथ अभी तक पासीज रहा है.