"तुम"

लम्हों का वो आखरी सिरा उंगलियों के पोरों से अभी छूटा नही था,
मुरझाया, सूखा हुआ वो आखरी दम जो तुमने भरा था, टूट कर गिरने को ही था,
कि जल उठा फिर उस अल्लहड़ से पहाड़ के पीछे से उन्माद का वो सूरज.
विदा हुए तुम और रह गई उस शब की नींद फिर अधूरी,
भारी हो झुकती हुई पपनियाँ, आगन में मोढों के पास रखे चाय के दो प्यालों और हवा में उड़ते उस खाली बिस्कुट के रेपर को देख रहीं हैं,
जी खाली खाली सा है, बेचैन है, और मैं एक एक कर बीते हुए बिखरे हुए लम्हे समेट रहा हूँ, इस उम्मीद में कि ये जी भर जाए,
बिस्तर पर पड़ी सिलवटों में बाकी बची कुछ बात जो जल्दी में तुम लिख गये थे, पढ़ रहा हूँ,
उस आखरी आगोश की खुश्बू और गरमी अभी भी मुझसे लिपटी है,
और तुम्हारे हाथ की नमी से मेरा हाथ अभी तक पासीज रहा है.

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