"तू अपना झूट संवार"

तू अपना झूट संवार, मैं अपना सच सजाता हूँ,
तू जला ख्वाब लपटों में, मैं दामन बचाता हूँ,
बैठा है पीठ फेर के, यूँ इत्मिनान में,
तू खींच फ़ासले, मैं दूरी मिटाता हूँ,
ये शॉक खींच तान के, ये आंड़े तिरछे वार,
तू लड़ा ले पेंच, मैं चरखी दिखता हूँ,
गुल तोड़ता है बाग से, पर उसको इल्म क्या,
तू सज़ा ले सेज, मैं अरथी उठाता हूँ,
यह कैसी प्यास है तेरी, यह कैसी तिश्नगी,
नशे में चूर तू, मगर मैं लड़खड़ाता हूँ,
आ दरमियों के फ़ासले कुछ ऐसे तय करे,
तू ज़रा सा दूर जा, मैं पास आता हूँ.

टिप्पणियाँ

Jai Bhaskar ने कहा…
waah bahut sundar...
Unknown ने कहा…
अति सुंदर

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