ग़ज़ल

वक्त तपता रहा पाओं जलते रहे,
जैसी सड़कें मिलीं वैसे चलते रहे,
कई सौदे किए दिल की आवाज़ से,
कोई इरफान थे कोई बनते रहे,
भीड़ में ही खड़ा एक इंसान हूँ,
ख्वाब जलते रहे ख्वाब पलते रहे,
जिंदगी का बड़ा ही अजब खेल है,
वो उलझती रही, हम सुलझते रहे,
शेर-ऐ-शाहे सवार की फित्त्रत रही,
कई धक्कों से गिर के सम्हलते रहे,
तुझसे शिकवा नही कुछ शिकायत नही,
ये तो अरमान हैं बस मचलते रहे।

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