उनका आँचल जो कभी ठिया था,
हमारा मुकद्दर भी कभी जिया था,
कई नज़मो को काता हमने, कई फुलकारियों को सिया था ,
हर ख्वाब को सच करने की ज़हेमत उठाई,
अजीब लेहेजा था उन मिया का,
यूँ ही एक दफा नींद में, वक्त के परिंदों को वश में किया था,
पुर असरार (संदेह से भरी हुई) नज़र, महाशर(क़यामत लाने वाली ) थी,
उनकी हर अदा पे हर कुछ तस्लीम(दाओ पे करना ) किया था,
वो खुदा, तो रूह आफजा थी,
आज रंग इंसानी है उस खुदा का .
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