क़द्र थोडी करो इतनी अच्छी नही,
छवि सयानी हुई अब वो बच्ची नहीं,

क्या हुआ जो गिरी उसको ठोकर लगी,
इस शेहेर की जो सड़कें हैं अच्छी नहीं,

पवन पुत्रों का युग कोई सतयुग हुआ,
आज आवोहवा से दुपट्टा उड़ा, उसकी गलती नहीं,

उफ़ ये १६ वीं सदी के विचारों की गठरी, इसको नीचे धरो,
सदी २१ वीं हुई अब ये काँधे तुम्हारे फलतीं नहीं,

क्यों गला फाड़ते हो कोई सुनता नहीं,
आज तुम जैसों की कोई चलती नहीं,

आज पानी यही हर बदन को लगा,
एक तुम्हारी ही दाल गलती नहीं,

कितना रौशन हुआ शब्-ऐ-माहौल है,
क्यो तुम्हारे ही घर में बिजली नही,

सूखे तिनके घरौंदों के चुभने लगे,
इनको माचिस लगाओ स्वाहा करो,
आज इच्छाओं का है ठिकाना कहीं,
उन सूखे घरौंदों में पलती नहीं।

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