तेरा नखरा कहूँ क्यों शूल सा है,
ये दिल हमारा नाजुक सा है, फूल सा है,
पुरवा में पश्चिम की ओर कदम ले मुट्ठी में भर-भर के उडाते हो,
हमारा मुकद्दर तुम्हारे हाथों से उड़ती धूल सा है,
मैं अपनी सुना_सुना के थक गया, वो सुनता ही नहीं,
वो इस दुनियादारी में बड़ा मशगूल सा है,
थक के गिर ही पड़ा मैं तो पीछे हटा,
वो न जाने किस तलब में तूल सा है,
जब गुजर ही गया अपने अंजाम से,
अब नज़र आ रहा है की मेरे हाथों में ये क्या भूल सा है।

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