नाम बताएँ आप का ?

ज़िक्र फिर हो चला है उसी बात का,
मुस्कुराती हुई एक हँसी रात का,

हम तमाशा हुए अपने जज़्बात का,
हाल कैसे कहूँ ऐसे हालात का,

बेफ़िज़ूली के आलम कही रह गये,
अब मुसाफिर हूँ मैं अपने आगाज़ का,

फिर उठाया है हुमको किसी शोर ने,
आप आलम बताएँ गई रात का,

खुद पे पहेरा लगाए हुआ क्या भला,
सोच आज़ाद पंछी है आकाश का,

कोई चर्चा नही सब हैं चुप क्यों भला.
कोई भेद खोलो किसी राज़ का,

जो हुआ बेदखल घर से रुसवा ना हो,
आज घर हो चला आस्तीन साँप का,

अपने होने का हुमको गुमाँ तब हुआ,
जब पूंछा उन्होने "नाम क्या है आप का".

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