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जून, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
इस समाज की परम्पराओं के धारणाओ के , न जाने कई बांध लांघे मैंने , हौसला तुम हो , खुद से न जाने कई सवाल और न जाने कितने ही सौदे , और अब् फैसला तुम हो ।
बेचैन रहा मजबूर रहा, क्या इस दिल का कुसूर रहा, बीती रात उनकी महेफिल का कुछ यूँ दस्तूर रहा , दिल से खेल खेलने वालों में ये दिल मशहूर रहा, बड़ा फीका उनके इश्क का फितूर रहा, इस रेत को तो पा लिया, और रूह से दूर रहा.