लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप जून 16, 2009 इस समाज की परम्पराओं के धारणाओ के , न जाने कई बांध लांघे मैंने , हौसला तुम हो , खुद से न जाने कई सवाल और न जाने कितने ही सौदे , और अब् फैसला तुम हो । और पढ़ें
लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप जून 03, 2009 बेचैन रहा मजबूर रहा, क्या इस दिल का कुसूर रहा, बीती रात उनकी महेफिल का कुछ यूँ दस्तूर रहा , दिल से खेल खेलने वालों में ये दिल मशहूर रहा, बड़ा फीका उनके इश्क का फितूर रहा, इस रेत को तो पा लिया, और रूह से दूर रहा. और पढ़ें