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"मरहम"

दर्द मेरा, जख्म मेरा, लहू मेरा मरहम तो हर कोई लिए बैठा है, कोई ज़हर दे मुझको, तो उसको मैं कहूं मेरा, जलाया रात भर खुद को ये दिल पिघलता नहीं अजब सी आग लिए बैठा है जुनूं मेरा, तेरे होठों की प्यासी बात सूख जानेदे, कोई खामोश लिए बैठा है सुकूं मेरा, तेरी हर फिक्र का इतना उधार काफी है, मेरे हर दर्द को मैं कब तलक कहूं तेरा,