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दिसंबर 29, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
आज का भारत" (Delhi gang-rape) हवस की बाढ़ में है बह रहा आवाम, नज़र से बह रहे दो धार आँसू कौन देखेगा, जला कर घर हथेली सेकने का दौर आया है, सुलगते रह गये अरमान पानी कौन फेकेगा, कोई खूनी लिए खंजर सियासत का रहनुमा है, वोही क़ातिल वोही मुक़बीर, मुक़दमा कौन जीतेगा, मालिक की वाह वही में वो कुत्ता शेर बन बैठा, दाँतों लगा जो खून अब तो माँस नोचेगा, किलसती आबरू उसकी है घायल जिस्म भारत का, हुए मुर्दे सभी, रोएगा छाती कौन पीटेगा.