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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
कांच के जैसे कुछ सपने थे, कांच के जैसे टूट गए, उनकी तेज़ी तूफानी थी, हमतो पीछे छूट गए, उची हस्ती, राज़ है उनका, दरबारों में धूम रहे, लोगो को चोरों ने लूटा, हमको राजा लूट गए, हमने कैसे जेहर पिया है, मुश्किल से दो घुट गए, पत्थर से अरमा भिड बैठे, अरमा के सर फूट गए, ऐसी नादानी की हमने, बच्चा कोई भूल करे, उस दामन से जा उलझे हम, जिस दामन में शूल भरे।
हैं पैर, घिसट के चलता है, तू काफिर मुझ पर हस्ता है, क्या कदमो को मालूम नहीं, है कौन गली क्या रास्ता है, सब सूनसान खामोश पड़ा, ये किन गूगों का दस्ता है, कोई चोर घुसे तब बस्ती का, हालत बड़ा ही खस्ता है, सब कुछ देखा भला उसका, वो भोला भला बच्चा है, कुछ तो बदलू उम्मीद लिए, वो रोज़ कमर को कसता है ।