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जनवरी 23, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
कांच के जैसे कुछ सपने थे, कांच के जैसे टूट गए, उनकी तेज़ी तूफानी थी, हमतो पीछे छूट गए, उची हस्ती, राज़ है उनका, दरबारों में धूम रहे, लोगो को चोरों ने लूटा, हमको राजा लूट गए, हमने कैसे जेहर पिया है, मुश्किल से दो घुट गए, पत्थर से अरमा भिड बैठे, अरमा के सर फूट गए, ऐसी नादानी की हमने, बच्चा कोई भूल करे, उस दामन से जा उलझे हम, जिस दामन में शूल भरे।