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"बोहोत कुछ जन्मा है तुमसे" तुमसे जुड़ा है बोहोत कुछ, बोहोत कुछ जन्मा है तुमसे, फूलों पर ओस सजती है जैसे, वैसे ही सजाए हैं तुमने ख्वाब, नींद की हथेली पर, तेरे चहेरे में जैसे कोई नदी मुस्कुराती है, और तेरी आँखों में टिमटिमाते हैं, सुबह की धूप के वो मोती, जो गिरते ही टूट कर बिखर जाते हैं, उस नदी की सतेह पर, जिसने तुमसे जन्म पाया है, तेरी अंगड़ाई में घटायें उलझ, टूट कर बरस जाती हैं, और छूट जाता है बाँध मेरी उम्मीद का, टकराता है पानी तेरे आँचल से मेरी बारीशों का, गोते ख़ाता है मेरा दर्द, सुकून का भवर खीचता है उसे गर्त में, और डूब जाता है फिर वो दर्द, कहीं खो जाता है, उस गहेरी नदी की तह में, जिसने तुमसे जन्म पाया है