खुशी - भाग 1


ख़ुशी की सापेक्षता का विवरण करें तो परिणाम तुलनात्मक आता है.
जीवन की क्रमागत उन्नती को देखें तो यह एक सचेत मानसिक प्रक्रिया और एक विकसित मूल्यांकन है जो जिन्दगी कैसे जी जाये या फिर ज़िन्दगी कैसी होनी चाहिए उसके मानक तय करता है, अब इसे मैं अभिधारणा ही कहूंगा.
ख़ुशी के मानक व्यक्ति विशेष के द्वारा बनाये हुए एक ग्राफ की तरह हैं जो मनमाने रूप से ऊपर और नीचे जाता रहता है.
कभी कोई क्रिया, व्यक्ति या वास्तु ख़ुशी देती है तो कभी वही शोक का कारण बन जाती है.
कुछ लोग कम में खुश है और कुछ लोग इसमें अपनी असफलता ढूढ़ लेते हैं की वे करोड़ों रुपये नहीं जुटा पाए.
ख़ुशी एक अनिर्धारित मान्यता या अनुभूति है जिसका आंकलन एक निर्धारित सोच के साथ करना चाहिए.
तभी तो कुछ लोग बुरी परिस्तिथियों में भी खुश रहते हैं और कुछ लोग अनुकूलता में भी रोते फिरते हैं, अब ऐसी खुसी के पीछे भागना भी व्यर्थ सा लगता है, दिमागी टंकड़ है सिक्का कभी चित पड़ता है तो कभी पट और कभी सीधा खड़ा हो जाता है.

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