ख़ुशी : भाग-2


पिछले अध्याय से आगे बढ़ आज यह देखते हैं कि एक भौतिकवादी/धनी सोच और ख़ुशी का तालमेल कैसा बैठता है.
धन है तो धनी है, जैसे जैसे धन का पारा चढ़ता है ख़ुशी भी अपेक्षाकृत बढ़ती है, पर यह हर किसी पुरुष, महिला या किन्नर इत्यादि पर पूरी तरह से लागू नहीं होता, अब ऐसा क्यों है यह आप भली भांति जानते हैं, यह रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बखूबी नमूदार है, ऐसा है आकांक्षित मन के कारन जो अक्सर आप को किसी मेहेंगी विलासित "लाल ऑडी A4" में किसी लाल बत्ती पर काले चढ़े हुए शीशों के पीछे दिख जाएगा. विलासिता में गले तक डूबे इस व्यक्ति विशेष का सुख और पानी घुटनो तक तब आ जाता है जब बगल में दाहिनी ओर एक "पीले रंग की लैंबोर्घिनी गलार्डो" आके रूकती है और दो बारी व्रूहूम...व्रूहूम...करती है, बस अब क्या व्यक्ति विशेष बस शेष रह जाता है और विशेष लाल से पीला हो जाता है.
अब इस प्रकार से देखें तो ना ही लाल ऑडी A4 वाले सज्जन पूर्ण रूप से धनि और खुश हैं, ना ही पीले रंग की लैंबोर्घिनी गलार्डो वाले सज्जन क्योंकि "बुगाटी वेरोन" तो उससे भी मेहेंगी है.

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